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Monday 14 November 2022

जनजातीय गौरव दिवस /बिरसा मुंडा जयंती 2022

 जानें महान क्रांतिकारी पुरुष “बिरसा मुंडा” से क्यों थर्राते थे अंग्रेज?





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देश को आज़ादी दिलाने वाले क्रांतिकारी मतवालों का राग ही निराला था। अंग्रेजों से देश को आज़ादी दिलाने वाले महापुरुष कई रहे। जिन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी महापुरुष जिन्हे बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल के आदिवासी लोग आज भी भगवान की तरह पूजते हैं। उनका नाम है, महानायक बिरसा मुंडा (Birsa Munda) जिन्हे देखकर अंग्रेज सत्ता थर्राती थी। जिनकी ताकत का लोहा पुरी अंग्रेज़ी हुकूमत मानती थीं। ऐसे ही महान क्रांतिकारी महापुरुष बिरसा मुंडा की जयंती (Birsa Munda Birth Anniversary) पर जानें उनका पूरा इतिहास।

Birsa Munda Birth Anniversary Hindi: मुख्य बिंदु 

  • महानायक बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को हुआ था। 
  • क्रांतिकारी बिरसा का अंग्रेजों के खिलाफ नारा था – “रानी का शासन खत्म करो और हमारा साम्राज्य स्थापित करो।”
  • जनमानस में धरती आबा के नाम से विख्यात थे बिरसा मुंडा 
  • संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में बदलेगा पूरा विश्व।

Birsa Munda Jayanti Hindi: बिरसा मुंडा जयंती क्यों मनाई जाती हैं?

मुंडा जनजाति से ताल्लुक रखने वाले बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 के दशक में रांची जिले के उलिहतु (Ulihatu) गाँव (झारखंड) में हुआ था। मुंडा रीती रिवाज के अनुसार उनका नाम बृहस्पतिवार के हिसाब से बिरसा रखा गया था। 19 वी शताब्दी के महान क्रान्तिकारी बिरसा मुंडा ने अपनें देश और आदिवासी समुदाय के हित में अपना बलिदान दिया था जिसकी याद में संपूर्ण देश बिरसा मुंडा जयंती मनाता है। 10 नवंबर 2021 में भारत सरकार ने 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रुप में मनाने की घोषणा की है।


बिरसा मुंडा कौन थे?

अंग्रेजों के विरुद्ध उलगुलान क्रांति का बिगुल फूंकने वाले बिरसा मुंडा (Birsa Munda) एक महान क्रांतिकारी और आदिवासी नेता थे। ये मुंडा जाति से संबंधित थे। बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के ऐसे नायक रहे हैं जिनको जनजातीय लोग आज भी गर्व से याद करते हैं। वर्तमान भारत में बसे आदिवासी समुदाय बिरसा को धरती आबा और भगवान के रुप में मानकर इनकी मूर्ति पूजा करते हैं। अपने समुदाय की हितों के लिए संघर्ष करने वाले बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन को भी अपनी ताकत का लोहा मनवा दिया था। उनके ऐसे नेक योगदान के चलते उनकी तस्वीर भारतीय संसद के संग्रहालय में आज भी लगी है। यह नेक सम्मान जनजातीय समाज में केवल बिरसा मुंडा को ही प्राप्त है।

परिवार और शिक्षा (Family & Education)

 महान क्रांतिकारी महापुरुष जिन्हें लोग ‘धरती आबा ‘ के नाम से समोधित करते हैं। उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखण्ड रांची ज़िले में हुआ। इनके पिता का नाम श्री सुगना मुंडा और माता का नाम करमी हटू था। बिरसा मुंडा के परिवार में उनके बड़े चाचा कानू पौलुस और भाई थे जो ईसाई धर्म स्वीकार कर चुके थे। उनके पिता भी ईसाई धर्म के प्रचारक बन गए थे। उनका परिवार रोजगार की तलाश में उनके जन्म के बाद उलिहतु से कुरुमब्दा आकर बस गया जहा वो खेतो में काम करके अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उसके बाद काम की तलाश में उनका परिवार बम्बा नाम के शहर में चला गया। बिरसा का परिवार वैसे तो घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करता था लेकिन उनका अधिकांश बचपन चल्कड़ में बीता था।

गरीबी के दौर में बिरसा को उनके मामा के गाँव अयुभातु  भेज दिया गया। अयुभातु में बिरसा ने दो साल तक शिक्षा प्राप्त की। पढ़ाई में बहुत होशियार होने से स्कूल चालक जयपाल नाग ने उन्हें जर्मन मिशन स्कूल में दाखिला लेने को कहा। अब उस समय क्रिस्चियन स्कूल में प्रवेश लेने के लिए ईसाई धर्म अपनाना जरुरी ही था तो बिरसा ने धर्म परिवर्तन कर अपना नाम बिरसा डेविड रख लिया जो बाद में बिरसा दाउद हो गया था।

Birsa Munda Jayanti [Hindi]: वर्तमान में बिरसा मुंडा का समाज में स्थान

धरती आबा बिरसा मुंडा आदिवासी समुदाय के भगवान कहे जाते हैं। मुण्डा भारत की एक छोटी जनजाति है जो मुख्य रूप से झारखण्ड के छोटा नागपुर क्षेत्र में निवास करती है। झारखण्ड के अलावा ये बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िसा आदि भारतीय राज्यों में भी रहते हैं जो मुण्डारी आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा बोलते हैं।

बिरसा मुंडा का इतिहास (History of Birsa Munda)

कालान्तर में यह अंग्रेजी शासन फैल कर उन दुर्गम हिस्सों में भी पहुंच गया जहाँ के निवासी इस प्रकार की सभ्यता-संस्कृति और परम्परा से नितान्त अपरिचित थे। आदिवासियों के मध्य ब्रिटिश शासकों ने उनके सरदारों को जमींदार घोषित कर उनके ऊपर मालगुजारी का बोझ लादना प्रारंभ कर दिया था। इसके अलावा समूचे आदिवासी क्षेत्र में महाजनों, व्यापारियों और लगान वसूलने वालों का एक ऐसा काफ़िला घुसा दिया जो अपने चरित्र से ही ब्रिटिश सत्ता की दलाली करता था।

ऐसे बिचौलिए जिन्हें मुंडा दिकू (डाकू) कहते थे, ब्रिटिश तन्त्र के सहयोग से मुंडा आदिवासियों की सामूहिक खेती को तहस-नहस करने लगे और तेजी से उनकी जमीनें हड़पने लगे थे। वे तमाम कानूनी गैर कानूनी शिकंजों में मुंडाओं को उलझाते हुए, उनके भोलेपन का लाभ उठाकर उन्हें गुलामों जैसी स्थिति में पहुँचाने में सफल होने लगे थे। हालांकि मुंडा सरदार इस स्थिति के विरुद्ध लगातार 30 वर्षों तक संघर्ष करते रहे किन्तु 1875 के दशक में जन्मे महानायक बिरसा मुंडा ने इस संघर्ष को नई ऊंचाई प्रदान की।

Birsa Munda Jayanti Hindi: बिरसा मुंडा का अन्याय के विरूद्ध संघर्ष

भारतीय जमींदारों और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था। मुंडा लोगों के गिरे हुए जीवन स्तर से खिन्न बिरसा सदैव ही उनके उत्थान और गरिमापूर्ण जीवन के लिए चिन्तित रहा करता था। 1895 में बिरसा मुंडा ने घोषित कर दिया कि उसे भगवान ने धरती पर नेक कार्य करने के लिए भेजा है। ताकि वह अत्याचारियों के विरुद्ध संघर्ष कर मुंडाओं को उनके जंगल-जमीन वापस कराए तथा एक बार छोटा नागपुर के सभी परगनों पर मुंडा राज कायम करे। बिरसा मुंडा के इस आह्वान पर समूचे इलाके के आदिवासी उन्हे भगवान मानकर देखने के लिए आने लगे। बिरसा आदिवासी गांवों में घुम-घूम कर धार्मिक-राजनैतिक प्रवचन देते हुए मुण्डाओं का राजनैतिक सैनिक संगठन खड़ा करने में सफल हुए। बिरसा मुण्डा ने ब्रिटिश नौकरशाही की प्रवृत्ति और औचक्क आक्रमण का करारा जवाब देने के लिए एक आन्दोलन की नींव डाली।

ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बिरसा का आंदोलन

1895 में बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गई जमींदार प्रथा और राजस्व व्यवस्था के साथ जंगल जमीन की लड़ाई छेड़ दी। उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ़ भी जंग का ऐलान किया। यह एक विद्रोह ही नही था बल्कि अस्मिता और संस्कृति को बचाने की लड़ाई भी थी। बिरसा ने अंग्रेजों के खिलाफ़ हथियार इसलिए उठाया क्योंकि आदिवासी दोनों तरफ़ से पिस गए थे। एक तरफ़ अभाव व गरीबी थी तो दूसरी तरफ इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1882 जिसके कारण जंगल के दावेदार ही जंगल से बेदखल किए जा रहे थे। बिरसा ने इसके लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तौर पर विरोध शुरु किया और छापेमार लड़ाई की।

Birsa Munda Jayanti [Hindi]: 1 अक्टूबर 1894 को बिरसा ने अंग्रेजों के खिलाफ़ आंदोलन किया। बिरसा मुंडा सही मायने में पराक्रम और सामाजिक जागरण के धरातल पर तत्कालीन युग के एकलव्य थे। ब्रिटिश हुकूमत ने इसे खतरे का संकेत समझकर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके 1895 में हजारीबाग केंद्रीय कारागार में दो साल के लिए डाल दिया।

बिरसा ने अंग्रेजों के खिलाफ़ डोंबारी में लड़ी अंतिम लड़ाई (Birsa Munda Death) 

कम उम्र में ही बिरसा मुंडा की अंग्रेजों के खिलाफ़ जंग छिड़ गई थी। लेकिन एक लंबी लड़ाई 1897 से 1900 के बीच लड़ी गई। जनवरी 1900 में डोंबारी पहाड़ पर अंग्रेजों के जुल्म की याद दिलाता डोंबारी बुरू में जब बिरसा मुंडा अपने अनुयायियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की रणनीति बना रहे थे, तभी अंग्रेजों ने वहां मौजूद लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इसमें सैकड़ों आदिवासी महिला, पुरुष और बच्चों ने अपनी जान गंवा दी थी।

Birsa Munda Death [Hindi]: बिरसा मुंडा की मृत्यु

अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया। 9 जून 1900 को 25 वर्ष की आयु में रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई, जहां उन्हें कैद किया गया था। ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि वह हैजा से मर गए, हालांकि उन्होंने बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखाए, अफवाहों को हवा दी कि उन्हें जहर दिया हो सकता है। झारखण्ड रांची में कोकर नामक स्थान पर उनकी समाधि बनाई गई और बिरसा चौक पर प्रतिमाये बनाई गई है। जिनकी लोग भगवान मानकर पूजा करते हैं l 


FAQs: Birsa Munda Jayanti 2022 [Hindi]

1. बिरसा मुंडा कौन थे?

Ans:- बिरसा मुंडा एक लोक नायक और मुंडा जनजाति के एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे। वह 19वीं शताब्दी की शुरुआत में आदिवासियों के हितों के लिए संघर्ष करने वाले महान क्रांतिकारी नेता थे। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन से लोहा लिया था।

2. बिरसा मुंडा के माता पिता कौन थे?

Ans:- बिरसा मुंडा के पिता सुगना मुंडा एवं माँ करमी हटू थी। 

3. बिरसा मुंडा का विद्रोह कब प्रारंभ हुआ था?

वर्ष 1895 से 1900 तक महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा ने अपने समुदाय के हित के लिए आंदोलन किया था जिसे “उलगुलान ” कहते हैं।

4. बिरसा मुंडा की मृत्यु कैसे हुई?

बिरसा मुंडा के विषय में ऐसा माना जाता है कि हैजा बीमारी के कारण मृत्यु हुई है। कोई कहते है कि उन्हे जेल में ही ज़हर देकर मार दिया गया। लेकिन इस बात की पुष्टि नही है।

5. बिरसा मुंडा का निधन कब हुआ?

वर्ष 1900 में 25 वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी बिरसा मुंडा का निधन रांची झारखंड की जेल में हुआ था।




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