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31 Oct: National Unity Day-राष्ट्रीय एकता दिवस
किसी भी देश का आधार तभी मजबूत होता है जब उसकी एकता और अखंडता मजबूत और स्थिर बनी रहे| भारत कई सालों तक गुलाम रहा, तो इसकी एक वजह यह थी कि हमारे बीच एकता की भावना नहीं थी| और इसी का फायदा उठाकर विदेशी ताकतें सैकड़ो वर्षों तक हमारे ऊपर राज करते रहे| देश का विकास, शांति, समृद्धि तभी संभव है जब देश के लोगों के बीच एकता कायम रहे| राष्ट्रीय एकता दिवस (नेशनल यूनिटी डे) लोगों को यही पाठ सिखाता है| चलिए जानते हैं (National Unity Day) राष्ट्रीय एकता दिवस के बारे में और भारत को मौजूदा स्वरुप देने में सरदार पटेल के योगदान के बारे में|
राष्ट्रीय एकता दिवस के बारे में जानकारी-National Unity Day
राष्ट्रीय एकता दिवस | नेशनल यूनिटी डे | रन फॉर यूनिटी
भारत में लौह पुरुष सरदार वल्लभ पटेल (Iron Man of India) को एकता की मिसाल कहा जाता है क्यूंकि लौह पुरुष ने देश की अखंडता और एकता को सुनिश्चित किया| यह सरदार पटेल ही थे जिन्होंने आजादी के बाद साढ़े पांच सौ से ज्यादा रियासतों का विलय भारत में कराकर देश को एकता के सूत्र में बाँध दिया| उनका साहसिक नेतृत्व आज भी देश के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है|
भारत के पहले ग्रहमंत्री रहे सरदार पटेल उस सदी में आज के युवा जैसी नई सोच के व्यक्ति थे| वो देश को हमेशा एकता का सन्देश ही देते रहे| यही वजह है कि हर साल सरदार पटेल की जन्मतिथि 31 अक्टूबर को पूरा देश राष्ट्रीय एकता दिवस (National Unity Day) के रूप में मनाता है|
राष्ट्रीय एकता दिवस (नेशनल यूनिटी डे) भारत सरकार ने सन 2014 में शुरू किया| इस दिन को मनाने उद्देश्य यह रखा गया की यह दिन देश, अखंडता और सुरक्षा के लिए वास्तविक और संभावित खतरे का सामना करने के लिए हमारे देश की अंतर्निहित ताकत और फ्लेक्सिबिलिटी की फिर से पुष्टि करने का अवसर प्रदान करेगा|
राष्ट्रीय एकता दिवस कैसे मनाते हैं
31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दौड़ (Run for unity) का देशभर में आयोजन होता है जिसमें लाखों लोग हिस्सा लेते हैं| दौड़ में भाग लेकर देशभर के लोग आपसी एकता को दर्शाते हैं| नेता और आमजन सरदार वल्लभभाई पटेल को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी प्रतिमा में फूल अर्पण करते हैं और देश को एक करने में उनके महान योगदान को याद करते हैं|
सरदार वल्लभ भाई का जीवन
लौह पुरुष सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 में गुजरात के खेड़ा जिले के नाडियाड में हुआ| किसान पिता के पुत्र वल्लभभाई पटेल, बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे| उन्होंने गोधरा से वकालत की पढ़ाई शुरू की| 1902 में वे बोरसद में वकालत करने लगे| बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए 1910 में वल्लभभाई पटेल इंग्लैंड चले गए| 1913 में वे भारत लौट आये और जल्द ही देश के नामचीन क्रिमिनल लॉयर बन गए| वल्लभभाई ने सबसे पहले अपने छेत्र में शराब, छुआ-छूत और नारियों पर अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी|
स्वतंत्रता की लड़ाई में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान खेड़ा आंदोलन में रहा| यह उनकी पहली बड़ी सफलता थी| 1928 में बारदोली सत्याग्रह के बाद उनका नाम पुरे देश में फ़ैल गया| महात्मा गाँधी की अहिंसा की निति ने सरदार पटेल को बहुत ज्यादा प्रभावित किया| 15 अगस्त 1947 को देश आजाद तो हुआ लेकिन चुनौतियाँ ख़त्म नहीं हुई| सरदार पटेल ने अपनी दूरदर्शिता और सूझबूझ से बिना किसी खून खराबे के देसी रियासतों को राष्ट्रीय एकीकरण के लिए बाध्य किया|
1948 में गाँधी जी की मृत्यु से सरदार पटेल को गहरा आघात पहुंचा और 2 साल बाद उन्हें भी हार्ट अटैक हुआ जिससे वे उभर नहीं पाए और 15 दिसंबर 1950 को उन्होनें इस दुनिया को अलविदा कह दिया|
अखंड भारत में सरदार पटेल का योगदान
15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी शासन से मुक्त हुआ लेकिन यह आजादी बिना शर्त नहीं मिली थी| देश को बटवारे का ज़हर पीना पड़ा| 14 अगस्त को दुनिया के नक़्शे पर एक नए देश पाकिस्तान का जन्म हुआ| विभाजन के नियम अंग्रेजों ने तय किये और भारत को मजहबी आधार पर बांटा गया| बटवारा सिर्फ जमीन का नहीं हुआ, आबादी भी धार्मिक आधार पर बट रही थी|
आबादी के समय देश में कुल 565 रियासतें थी| माउंट बैटन प्लान के तहत राजाओं और रजवाड़ों को दोनों देशों में से एक को चुनने की आजादी थी या अलग रहने का विकल्प दिया गया था| बतौर ग्रहमंत्री सरदार पटेल पर लोगों की सुरक्षा और देश को एक रखने की दोहरी जिम्मेदारी थी| कुछ महाराज जागरूक और देशभक्त थे लेकिन उन में से कुछ ऐसे भी थे जो अंग्रेजों के जाने के बाद स्वतंत्र शासक बनने का स=ख्वाब देख रहे थे| सरदार पटेल ने राजाओं और नवाबों से देशभक्ति दिखाने का आवाह्न किया| उन्होंने राजाओं से अपनी प्रजा के हित में सोचने को कहकर यह स्पष्ट कर दिया कि देसी राजाओं का अलग देश बनाने का सपना असंभव है और भारत का गणतंत्र बनने में ही उनकी भलाई है|
5 जुलाई 1947 में सरदार पटेल ने रियासतों के प्रति आजाद भारत सरकार की निति स्पष्ट करते हुए कहा कि रियासतों को तीन विषयों सुरक्षा, विदेश और संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा| कई रियासतों ने भारत सरकार की बात मानी और 15 अगस्त से पहले ही विलय पत्र पर दस्तखत कर दिए| कुछ राजाओं ने न-नुकुर की पर कोई विकल्प न होने पर विलय की बात उन्हें माननी ही पड़ी| लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद हैदराबाद, जूनागढ़, भोपाल और कश्मीर भारत का हिस्सा बनने को तैयार न थे|
जूनागढ़ का भारत में विलय
जूनागढ़ ने पाकिस्तान में मिलने की घोषणा की जबकि कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने अलग देश बने रहने का एलान किया| 5 सितम्बर 1947 को जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान के साथ विलय पत्र पर दश्तखत कर दिए| सरदार पटेल ने नवाब से अपना फैसला बदलने को कहा पर नवाब माना नहीं| इस बीच जूनागढ़ के लोगों ने नवाब के खिलाफ विद्रोह कर दिया | बढ़ते विरोध के बीच नवाब को पाकिस्तान भागना पड़ा और जूनागढ़ भारत में मिला लिया गया|
हैदराबाद का भारत में विलय
हैदराबाद के निज़ाम ने उसे आजाद देश घोषित कर दिया | भारत ने निज़ाम से अपना फैसला बदलने की अपील की| जून 1948 में माउंट बैटन ने हैदराबाद को भारत से समझौता करने की सलाह दी| प्रस्ताव के तहत हैदराबाद भारत की प्रभुता के अधीन एक स्वायत राष्ट्र का दर्जा पा सकता था लेकिन निज़ाम माना नहीं| इस बीच हैदराबाद में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए| भारत ने हैदराबाद में सेना भेजने का फैसला लिया| 13 सितम्बर 1948 को भारत और हैदराबाद के बीच लड़ाई शुरू हुई| 18 सितम्बर को निज़ाम की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया|
कश्मीर में पाकिस्तानी सेना के जवान और कबाइली घुस आये| महाराजा हरी सिंह ने भारत से मदद मांगी| भारत ने विलय पत्र पर दस्तखत किये बिना मदद भेजने से इंकार कर दिया| आखिरकार 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरी सिंह ने विलय के कागज़ में दस्तखत कर दिए|
भोपाल का भारत में विलय
मार्च 1948 में भोपाल के नवाब ने स्वतंत्र रहने की घोषणा की और मई में मंत्रिमंडल घोषित कर दिया| लेकिन भोपाल की जनता ने इसका विरोध किया | 29 जनवरी 1949 को नवाब ने मंत्रिमंडल बर्खास्त कर दिया| भारत के दबाव और जनता के विरोध के बीच 30 अप्रैल 1949 को नवाब ने विलय पत्र पर दस्तखत कर दिए| 1 जून 1949 को भोपाल रियासत भारत का हिस्सा बन गई|
इस तरह तमाम देसी रियासतें भारत का हिस्सा बनी| देश की एकता और मौजूदा स्वरुप तैयार करने में सरदार पटेल की अहम् भूमिका के लिए देश उन्हें हमेशा याद रखेगा|
सरदार पटेल एक स्वतंत्रता सेनानी
ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन 'खेड़ा' और 'बारदोली' का जिक्र किये बिना अधूरा है| जहाँ महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आधारित चम्पारण आंदोलन की सफलता ने लोगों को लड़ने का नया रास्ता दिखाया| तो खेड़ा और बारडोली के सत्याग्रह आंदोलन ने सरदार पटेल को एक बड़े जन नेता के रूप में स्थापित किया|
खेड़ा आंदोलन
1917 का सावन गुजरात के किसानों के लिए मुसीबत बन कर आया| इस साल बहुत ज्यादा बारिश हुई थी| लगातार बारिश से बाढ़ के हालात बेकाबू होते चले गए| खेतों में पानी जमा होने से किसानों की फसलें बर्बाद हो गयी| खेड़ा के आसपास अनाज और पशुओं के चारे की भारी किल्लत हो गयी| इंसान और जानवरों के लिए भुखमरी के हालात बन गए| ऐसी हालात में खेड़ा के किसानों ने सरकार से अनुरोध किया कि उनसे इस साल माल गुज़ारी न वसूली जाए| लेकिन अंग्रेजी नौकरशाओ ने किसानों की फ़रियाद सुनने से इंकार कर दिया|
गुजरात सभा का अध्यक्ष होने के नाते महात्मा गाँधी ने अधिकारियों को पत्र लिखकर माल गुजारी की वसूली स्थगित करने की मांग की| जब कोई जवाब नहीं मिला तो गाँधी जी ने खेड़ा के किसानों को सत्याग्रह की सलाह दी और शपथ दिलाई कि कोई भी किसान बकाया माल गुजारी नहीं देगा| गाँधी जी के आह्वाहन पर सरदार वल्लभभाई पटेल वकालत छोड़ कर इस आंदोलन में कूद पड़े| उन्होंने किसानों में सरकार से ना डरने का साहस जगाया| सरकार ने आंदोलन दबाने की कोशिश की लेकिन असफल रही| आखिरकार सरकार को समझौता करना पड़ा|
खेड़ा आंदोलन ने सरदार पटेल की जिंदगी बदल दी| अब वे पूरी तरह से महात्मा गाँधी और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति समर्पित थे| उन्होंने विदेशी कपड़ो का त्याग कर खादी पहनना शुरू किया|
बारदोली आंदोलन
1928 सरदार पटेल के जीवन का अहम् पड़ाव है| इस साल गुजरात का बारदोली बाढ़ और अकाल से पीड़ित था| किसान भुखमरी के कगार पर थे| ऐसे में ब्रिटिश शासकों ने लगान सालाना तीन फीसदी तक बढ़ाने का फरमान सुना दिया | इससे किसानों में गुस्से की लहर दौड़ गई| बढ़ा हुआ लगान 30 जून 1927 से लागू होना था| मुंबई राज्य की विधान सभा ने इस बढ़े हुए लगान का विरोध किया| किसानों का एक मंडल उच्च अधिकारियों से मिला लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ| जब सरकार टस से मस नहीं हुई तो इसके विरोध में सत्याग्रह आंदोलन करने का फैसला लिया गया|
किसानों ने सर्व सहमति से फैसला लिया की किसी भी कीमत पर बढ़ा हुआ लगान अदा नहीं किया जाएगा| महात्मा गाँधी की सलाह पर आंदोलन की कमान सरदार पटेल को सौपीं गई| सरकार ने किसानों के लगान न देने पर उनके पशु धन और घरों की कुर्की करानी शुरू कर दी| इस बीच गाँधी जी की अपील पर 12 जून को पुरे देश में बारदोली दिवस मनाया गया| इसके बाद आंदोलन चारों तरफ फ़ैल गया| आखिरकार को झुकना पड़ा| वाइसराय की सलाह पर मुंबई सरकार ने लगान के आदेश को रद्द कर दिया | आंदोलन की सफलता पर एक विशेष सभा का आयोजन हुआ| इस सभा में महात्मा गाँधी ने वल्लभभाई पटेल को सरदार का ख़िताब दिया|
सरदार वल्लभभाई पटेल का व्यक्तित्व देश के लिए हमेशा प्रेरणाश्रोत रहेगा| उन्होंने युवा अवस्था से ही राष्ट्र के लिए अपना जीवन समर्पण कर दिया था और अंत तक इस पथ पर लगे रहे|
सरदार वल्लभभाई पटेल को सम्मान
1991 में सरदार वल्लभभाई पटेल को मरणोप्रांत भारत रत्न से नवाज़ा गया|
सरदार पटेल के सम्मान में गुजरात में उनकी विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा (182 मीटर) "स्टेचू ऑफ़ यूनिटी" बनाई गई है जो न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है| इसका उद्घाटन 31 अक्टूबर 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की 143वी वर्षगांठ पर किया|
अहमदाबाद का अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट सरदार पटेल के नाम पर रखा गया है| गुजरात के अहमदाबाद में ही स्थित मोटेरा क्रिकेट स्टेडियम भी लौह पुरुष सरदार पटेल के नाम पर रखकर उनको श्रद्धांजलि दी गई है|
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